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वैसे तो हमारे देश में रेडियो का आगमन 1923-24 में हो गया था और बचपन में पापा को बड़ा सा टीवी जैसा दिखने वाला रेडियो सुनते खूब देखा था पर मेरी जिंदगी में इस अनमोल दोस्त ने दस्तक दी 2004 में जब मैंने अपना पहला रेडियो ख़रीदा। अपने शहर से इंटर की परीक्षा पास करने के बाद डॉक्टर बनने की चाहत दिल में लिए पटना जाना हुआ। नए शहर में अजनबियों के बीच और घर वालो से पहली बार दूर जाने की वजह से वहां ज्यादा दिन नहीं टिक पाया और एक मुश्किल भरा हफ्ता काटने के बाद भाग आया घर। अम्मी को छोड़ सभी नाराज थे , वो तो पुरे एक हफ्ते बाद आए अपने बेटे को दुलार, प्यार और अच्छे पकवान खिलाने में ही व्यस्त थी लेकिन बाकि लोगों के बीच चर्चा शुरू हो चुकी थी के अब क्या होगा इस लड़के का। कैसे बनेगा ये डॉक्टर? एक महीने बाद हिम्मत जुटाई और नए जोश और ज़ज्बे के साथ आ गया फिर से पटना। पर इस बार मैं अकेला नहीं था। इस बार मेरे साथ था पापा का दिया हुआ एक बहुत ही प्यारा तोहफा : मेरा नया ब्रांडेड रेडियो वो भी फिलिप्स कंपनी का 🙂
घर पे हम लोग टीवी वगेरह कम ही देखा करते थे , दोस्तों के साथ बाहर खेलने कूदने , भाई बहनों के नोक झोक इत्यादि से ही मनोरंजन हो जाता था और समय अच्छे से बीत जाता था। पर पटना के लाल बाग़ स्थित सफी लॉज के कमरा नंबर 3 में मन कैसे लगे? अब आने के साथ ही तो पढ़ना लिखना होता नहीं न भाई । सो हो गयी शुरुआत ध्वनि तरंगो के साथ समय बिताने की। सुबह की चाय समाचार और भूले बिसरे गीतों के साथ होती तो रात में पांच मिनट वाला 11 बजे का आखरी समाचार सुनकर सो जाया करता। मन स्थिर होने के कारन धीरे धीरे पढाई पे भी ध्यान देना शुरू कर दिया। रेडियो के साथ जो सबसे अच्छी बात होती है वो ये के आप इसे सुनते हुए और भी कई काम कर सकते है। ज्यादा मेहनत वाला काम जैसे घर की सफाई इत्यादि है तो वॉल्यूम तेज करके काम में लग जाइए, थकान का एहसास कम हो जाता है और अगर ध्यान लगाकर फिजिक्स का कोई न्यूमेरिकल प्रॉब्लम हल करना है तो धीमी आवाज में गानों का लुत्फ़ उठाइए। यकीन मानिए नींद नहीं आएगी और आपने जो अपना माथा भविष्य के 300 डाक्टरों के बीच कोचिंग में खपाया था वो फिर से काम करने लगेगा। समय के साथ रेडियो खासकर आकाशवाणी की विविध भारती सेवा से मेरा लगाव बढ़ता चला गया। जब नए दोस्त बनने लगें और दोस्तों के यहाँ आना जाना शुरू हो गया तो पता चला के ये रेडियो प्रेम मेरा अकेले का नहीं है बल्कि यह तो बिना भेद भाव किए सभी का साथी बनकर उनकी किताबों से सजी टेबल की सोभा बढ़ा रहा है। क्या मजा आता था जब मैच की कमेंट्री सुनने सब एक साथ इकठा हुआ करते थे । जिसके पास सबसे अच्छा वाला रेडियो होता था उसी के यहाँ महफ़िल लगती थी।
अब समय बदल गया है, मनोरंजन और जानकारी हासिल करने के ढेरों साधन उपलब्ध है। ख़ुशी की बात ये है की बदलते समय में रेडियो में भी बहुत बदलाव हो गए है। सेकड़ो FM चैनल आ गए गए है, मोबाइल फ़ोन के साथ साथ टेलीविजन पे भी DTH के माध्यम से रेडियो उपलब्ध हो गया है पर वर्तमान के FM स्टेशनों के सामने SW/MW की चमक फीकी पर गयी है, या कहिए इसके शौक़ीन ग्रामीण इलाकों तक सिमित हो गए है। जीवनशैली भी बदल गयी है। सारी चीज़े मोबाइल में ही समाती जा रही है। अब गाड़ी के अलावा रेडियो सुनने का टाइम कम ही मिलता है। वैसे अपने मोबाइल में AIR का एक app रखा है मैंने और विविधभारती के रिकार्डेड प्रोग्राम कभी कभी सुन लेता हूँ। भले ही आज समय के आभाव या कहिए अन्य गैजेट्स की उपलब्धता के कारण रेडियो से मेरा साथ छूटता जा रहा है और पिटारा में आज क्या खुलेगा ये जानने की जिज्ञासा पूरी तरह ख़त्म हो चुकी हो पर इसके साथ बिताये हुए पलों का अनुभव भुला पाना मुश्किल है।
आज भले मैं डॉक्टर नहीं बन पाया और सरकारी बैंक में नौकरी करके संतुष्ट हूँ पर इस सफलता में मेरे इस साथी ने बहुत अहम किरदार निभाया है। भविष्य बनाने के उन शुरुआती दिनों में अगर रेडियो न होता तो शायद मैं दुबारा पटना छोड़ कर घर भाग गया होता और वापस भी न आता और शायद ठीक से त्यारी भी न कर पाता और फिर पता नहीं क्या कर रहा होता..
(ahmadzishan.blogspot.in)
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